नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) को श्री राम के परम भक्त हनुमान जी का अवतार माना जाता है। महान संत होके भी यह बाबा आपको एक साधारण सा कंबल ओढ़े दिखाई देते हैं। भारत ही नहीं बल्कि विदेशी हस्तियां भी नीम करोली बाबा के भक्त है। बताया जाता है कि हनुमान जी के सच्चे भक्त नीम करोरी बाबा ने भारत सहित विदेशों में हनुमान जी के कुल 108 मंदिर बनवाए हैं। चलिए आज हम जानते हैं नीम करौली बाबा के जीवन परिचय के बारे में।
केसे पड़ा बाबा का नाम नीम करोली:
नीम करोली बाबा के बारे में कुछ किस्से सुनने को मिलते हैं। जिसमें से एक किस्सा उनके नाम से जुड़ा है, जिससे हमें पता चलता है कि नीम करोली बाबा नाम कैसे पड़ा। बता दे कि एक बार नीम करोली बाबा एक ट्रेन में फर्स्ट क्लास डब्बे में सफर कर रहे थे। जब ट्रेन मे टिकट चेकिंग के दौरान ट्रेन कर्मचारी द्वारा बाबा जी से टिकट दिखने को कहा गया, तो बाबाजी के पास कोई भी टिकट नहीं था। ट्रेन कर्मचारी के द्वारा नीम करौली गांव मे बाबा जी को ट्रेन से उतार दिया गया। जिसके बाद बाबा जी ट्रेन से उतर कर नीचे चिमटा गाड़ कर बैठ गए। उसके बाद ट्रेन वहा से आगे बड़ ही नहीं पा रही थी। ट्रेन का इंजन अपने आप जाम हो गया था। फिर पास में जब टिकट कलेक्टर को लोगो ने बताया, कि यह कोई आम बाबा जी नहीं है। यह ट्रेन तभी चल सकती है जब बाबा जी से माफी मांगी जाएगी। उसके बाद ट्रेन कर्मचारी के द्वारा बाबा जी से माफी मांगी गई। साथ ही उन्हें फर्स्ट क्लास के डिब्बे में फिर से बैठाया गया। बाबाजी के मानने से ट्रेन का इंजन ठीक हो गया और सभी लोगों ने बाबा जी को प्रणाम किया। इसी गांव जहां ये सब हुआ करोली के नाम से बाबाजी नीम करोली बाबा जी कहलाने लगे।
जन्म और माता पिता: गुरु देव नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) का जन्म लगभग 1900 के आसपास उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में हुआ था। नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) का जन्म एक ब्राह्मण परिवार मे हुए। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा तथा माता का नाम लक्ष्मी नारायण था। बहुत छोटी उम्र 11 वर्ष में ही नीम करोली बाबा की शादी उनके माता पिता द्वारा करा दी गई थी।
बताया जाता है कि 1958 के आस पास बाबा ने घर परिवार का त्याग कर दिया था। उसके बाद बाबा संत की भांति इधर-उधर विचरण किया करते थे। नीम करोली बाबा द्वारा गुजरात के बवानिया मोरबी में तप साधना की गई थी। हालांकि तपस्या के बाद ज्ञान प्राप्त होने के बाद उन्होंने, भटके हुए लोगों को धर्म और ज्ञान का मार्ग बताना और उस पर चलना सिखाया। 10 सितंबर 1973 को वृंदावन में बाबा ने अपने देह का त्याग कर दिया था। कहा जाता है कि उसके बाद नीम करोली बाबा हनुमान जी में ही विलीन हो गए।
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